Shiv Tandav Stotram – Ravan Rachit with PDF Download
The Shiv Tandav Stotram, often known as the Ravan-Rachit Shiv Tandav Stotram, is a timeless and dignified stuti composed by Ravana, the mighty king of Lanka and a devoted disciple of Lord Shiva.
शिव तांडव स्तोत्र, जिसे रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र भी कहा जाता है, एक प्रसिद्ध स्तुति है जिसकी रचना लंकापति रावण ने भगवान शिव की महिमा में की थी।
In the rich traditions of Sanatana Dharma, Lord Shiva is the supreme essence where creation, preservation, and destruction merge in perfect harmony. He is the echo within silence, the storm within stillness. The Shiv Tandav Stotram, composed in praise of such a Mahadev, is not merely a hymn—it is a divine force, an awakening experience for the soul.
सनातन धर्म की गूढ़ परंपराओं में भगवान शिव एक ऐसे परम तत्त्व हैं, जिनमें सृष्टि, स्थिति और संहार—तीनों का अद्वितीय संगम होता है। वे निःशब्द में भी गूंज हैं, शांति में भी तूफ़ान हैं। ऐसे महादेव की स्तुति में रचित शिव तांडव स्तोत्र केवल एक स्तोत्र नहीं, एक दिव्य ऊर्जा है, एक आत्मा को जागृत कर देने वाली अनुभूति है।
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Composed by Ravana, the mighty king of Lanka and a devoted Shiva bhakt, the Shiv Tandav Stotram is a rhythmic hymn that praises the fierce, majestic, and divine form of Lord Shiva. Each verse paints a vivid picture of His matted hair, swirling flames, roaring Damaru, and the celestial dance that keeps the balance of creation and destruction in check.
इस महास्तोत्र की रचना लंकापति रावण ने की थी, जो शिव का परम उपासक था। उसकी भक्ति इतनी प्रबल थी कि उसने इस स्तोत्र के माध्यम से स्वयं शिव को प्रसन्न कर अमरता की ओर एक मार्ग प्रशस्त किया। शिव तांडव स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक में भगवान शिव की गरजती जटाएं, प्रज्वलित नेत्र, नाचते डमरू, और उनका रौद्र तांडव एक आध्यात्मिक नृत्य के रूप में प्रकट होता है।
Shiv Tandav Stotram – Ravan Rachit
रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र लिरिक्स और अर्थ
जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम् ॥१॥
जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥
धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥
सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥
ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥
करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥
नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥
प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥
अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥
दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥
कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः ॥१४॥
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥१६॥
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥
॥ इति श्रीरावण कृतम् शिव ताण्डव स्तोत्रम्स म्पूर्णम् ॥
In Sanatana culture, this stotra is more than just devotional poetry—it is a spiritual experience. It resonates with high energy, deep emotion, and a raw connection to the divine. Devotees believe that reciting the Shiv Tandav with devotion can invoke inner strength, peace, and divine blessings. It is often chanted during special rituals, on Maha Shivratri, and by those seeking the grace of Mahadev…
सनातन संस्कृति में यह स्तोत्र आत्मा को शिव से जोड़ने का माध्यम है। इसे गाना या उसका ध्यानपूर्वक पाठ करना, केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं बल्कि एक तप है—एक ऐसी साधना जो आत्मा को शिवत्व के साक्षात्कार तक पहुंचा सकती है। यह स्तोत्र भक्ति, शक्ति और दिव्यता का संगम है, जो हर श्रोता के भीतर गहराई से गूंजता है …